छत्तीसगढधार्मिकसंपादकीय

ओम में समाया है सारा खजाना

 

“शिवधाम कोड़िया के भुइं फोड़ शिव लिंग में प्राकृतिक रूप से ॐ अंकित”

ननकटठी।

ॐ की महिमा अनंत है | इसकी महिमा के संबंध में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं,लिखे जाते रहेंगे | फिर भी इसकी महिमा का पूरा वर्णन करना संभव नहीं है |

 

ॐ में समाया है सारा खजाना- ॐ ही ब्रह्म है,ॐ ही सच्चिदानंद है, ॐ ही अनंत है, ॐ ही नित्य है, ॐ ही अमरत्व हे | यह ही सबका श्रोत है | सब वेद इससे ही निकले हैं | सब भाषाओं का आधार ॐ ही है | ॐ में ही सब समाया है |

ॐ = अ+उ+म+(॑॑ ऺॖ ) अर्ध तन्मात्रा | ॐ का ‘अ’ कार स्थूल जगत का आधार है | ‘उ’ कार सूक्ष्म जगत का आधार है | ‘म’ कार कारण जगत का आधार है | अर्ध तन्मात्रा ( ऺॖ ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता, बल्कि तीनों जगत जिसमें सत्ता, शक्ति, स्फूर्ति लेते हैं, फिर भी जिसमें रंच मात्र भी फर्क नहीं पड़ता, उस परमात्मा का द्योतक है |

 

ॐ बीज मंत्र है – ॐ बीज मंत्र है | ॐ ही परब्रह्म है | ॐ ही अपरब्रह्म है |ॐ ही सर्वोत्कृष्ट मंत्र है |

 

ॐ प्रणव मंत्र है – ॐ को ओम कहा जाता है | उसमें भी बोलते वक्त ओ (अ+उ) पर ज्यादा जोर दिया जाता है | ॐ के उच्चारण से दीर्घ स्वर निकलता है | ॐ का उच्चारण साढ़े तीन मात्रा का होता है | इसे प्रणव मंत्र कहते हैं | भगवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है- ‘प्रणवः सर्व वेदेषु |’ ‘वेदों में मैं ॐ

हूँ | ‘ऋषियों ने गहराई में जाकर इसकी खोज की थी |

 

ॐ का उच्चारण- ॐ अर्थात् प्रणव | प्रणव का उद्गम स्थल नाभि से ‘ ओ ‘ के रूप में होता है | ओ=अ+उ | ‘उ’ के उच्चारण से धीरे धीरे स्वरारोहण करके उसे ब्रह्मरंध्र चक्र में लाया जाता है तथा ‘ म ‘से कुछ क्षण आरोहण के बाद उसे समाप्त किया जाता है |

प्रत्येक मंत्र के शुरू में ॐ लिखने या बोलने का विधान है |

 

ॐ नमः शिवाय का महत्व- ‘ॐ नमः शिवाय’ पंचाक्षरी मंत्र है | शिव की उपासना करते समय ‘पंचाक्षरी मंत्र’ का जाप बहुत खास होता है | शिवालयों में शिवोपासना, शिवलिंगों की पूजा की जाती है जिससे भक्त को अपार धन- वैभव की प्राप्ति होती है, वहीं शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जप करने से उसके अंतःकरण की शुद्धि हो जाती है और वह अपने अंतःकरण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान के रूप में विराजमान भगवान शिव के समीप होता जाता है | उसके दारिद्रय, रोग, दुख, शोक एवं शत्रु जनित पीड़ा एवं कष्टों का अंत हो जाता है | उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है |

पापों से परेशान होकर विश्राम के लिए प्राणी जहां आराम पाता है, उसी आश्रय को शिव कहा जाता है | शिव परमात्मा हैं |

 

कोड़िया के ‘ भुइं फोड़ शिवलिंग ‘ में प्राकृतिक रूप से ॐ अंकित – छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र रहा है | यहां शैव धर्म की बहुलता रही जिसके कारण यहां शिव मंदिरों की अधिकता है | इसमें दुर्ग जिला भी समृद्ध है |

जिला मुख्यालय से 21 कि. मी. की दूरी पर दुर्ग- धमधा सड़क मार्ग पर स्थित ग्राम शिवधाम कोड़िया में अनोखा शिवमंदिर है जहां ‘भुइं फोड़’ के नाम से सुविख्यात स्वयंभू भगवान शिव का दिव्य व भव्य ज्योतिर्लिंग है | मनोकामना के पूर्तिकर्ता व शीघ्र फल प्रदाता है |

ध्यान से देखने पर शिवलिंग सामने की ओर ॐ अंकित दिखाई देता है |

ॐ की आकृति अपने आप में आल्हाद कारी है |इसे उभरे कुछ बरस ही हुए हैं | इसकी महत्ता काफी बढ़ी है |

 

शिवलिंग पर पड़ी धारियां खास हैं- ज्योतिर्लिंग दिव्य व भव्य है | इस पर पड़ी धारियां इसे अन्य शिवलिंगों से खास बनाती है |

 

शिवलिंग के उद्भव- विकास की दिलचस्प कहानी- ढाई सौ साल पहले मालगुजारी जमाने में घुरूवा में कुआं खोदते समय मिला नारियल के आकार का लाल भूरे रंग का पत्थर, जिसे निकाला नहीं जा सका था,बढ़ता गया |

 

आकार बढता गया- शिवलिंग पर जल चढ़ा कर नारियल धूप से ग्रामीण पूजा अर्चना करने लगे | गोलाकृति बढ़ती गई | इसे बढ़ता देख दाऊ रूप सिंह वर्मा ने छोटा सा मंदिर बनवा दिया | मन्नतें पूरी होने से यह आस्था का केन्द्र बन गया |

 

मंदिर का पुनर्निर्माण- दाऊजी द्वारा निर्मित मंदिर जर्जर हो गया था | ग्रामीणों ने पुनर्निर्माण समिति का गठन कर 1995 में पुनर्निर्माण का कार्य आवक चंदे से प्रारंभ कराया | 2005 में मंदिर निर्माण संभव हो पाया | मंदिर विशाल बना है |

 

भित्ति चित्र एवं चित्रांकन- मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग तो अपने स्थान पर ही है, द्वार, जल निकासी, परिक्रमा स्थल को सुविधानुकूल नया रूप दिया गया है | अंदर सूर्य प्रभा की आकृति में कांच जड़े गये हैं जिनमें बिम्ब झलकते हैं | काष्ठ निर्मित द्वार, चौंखट, मंदिर के अंदर और बाहर के चतुष्कोणीय एवं अष्टकोणीय दीवारों पर अत्यंत मुग्ध कारी कलात्मक चित्रांकन किया गया है | भित्तिचित्र एवं रंग संयोजन लोगों को लुभाते हैं |

चांदी का परत- जलहरी को शुद्ध चांदी से मढ़ा गया है | बड़ा आकर्षक लगता है |

 

घुरूवा के दिन बहुरथे- वधछत्तीसगढ़ में एक कहावत है-‘घुरूवा के दिन बहुरथे |’इसका अर्थ है कि खाद का गड्ढा भी एक दिन सुंदर स्वरूप को पा लेता है | यह यहां चरितार्थ है | जहां गोबर कचरा संग्रहित करने का गड्ढा- घुरूवा था, आज वहीं शिव ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है |

 

महाशिवरात्रि मेला- धार्मिक सांस्कृतिक आयोजनों के साथ तीन दिवसीय दिव्य सत्संग समारोह एवं महाशिवरात्रि विशाल मेला लगता है |

 

श्रद्धा का महा सावन – सावन का महीना शिवजी का प्रिय महीना है | शिव भक्त शिव ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने एवं जलाभिषेक करने दूर दूर से आते हैं | सोमवार का दिन तो खास होता है | दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है | भारी भीड़ होती है | केसरिया कपड़ा पहने कांवड़िये समूह में जलाभिषेक करने आते हैं | इनमें पुरुष, महिला , कन्या, बच्चे शामिल होते हैं | मंदिर बोल बम, ओम नमः शिवाय, हर हर महादेव के जय घोष से गुंजायमान रहता है | इस वर्ष 20 गावों के कांवड़ियों का विशाल जत्था श्री साजा राउत मंदिर सिरसाखुर्द से चौथे सोमवार 31 जुलाई को बैनर, झांकी, बाजा गाजा के साथ यहां जलाभिषेक करने आयेंगे | हजारों की संख्या में उनका आगमन अभूतपूर्व व ऐतिहासिक होगा | दूसरे सोमवार 17 जुलाई को भी प्रदीप साहू एवं काशीनाथ साहू की अगुवाई में कांवड़ियों का विशेष बड़ा जत्था जलाभिषेक करने पहुंचा था |

 

शिवधाम कोड़िया- भुइं फोड़ शिव मंदिर की प्रसिद्धता से यह गांव अब’ शिवधाम कोड़िया के नाम से जाना जाता है | उक्त जानकारी

डॉ नीलकंठ देवांगन कोड़िया ने दी है ।

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लोकेश्वर सिंह ठाकुर (प्रधान संपादक) मोबाइल- 9893291742 ईमेल- anantcgtimes@gmail.com वार्ड नंबर-5, राजपूत मोहल्ला, ननकटठी, जिला-दुर्ग

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